Wednesday 4 April 2012

Ankita Panwar



आज प्रस्तुत हे उत्तराखंड की  कवियत्री अंकिता पंवार की भाव पूर्ण रचना.


Ankita Panwar


गरीबी दुष्चक्र


प्रति छन प्रत्यक  जगह एक से हालात नहीं होते
जब कुछ लोग चैन से होते हे
तो कहीं होती हे
दिल दहला देने वाली चीत्कारें
कहीं उम्मीद दूर रही होती हे
और कहीं भ्रस्टाचार की साड़ी सीमाए
चमचमाती भारतीय अर्थव्यवस्था को जब
ओबामा भी सलाम कर रहा हे,तब
भी गरीब व्यक्ति रोटी व छत के अभाव में
गर्मी
सर्दी
बरसात
जेसे प्राकृतिक आपदाव
में शहीद होकर पुलिश का नया केश
मीडिया की ब्रेअकिंग न्यूज़
नेताजी के लिए नया मुद्दा
बनकर
सबकी नय्या पार लगता रहा हे
परन्तु स्वयम गरीबी के दुश्चक्र
के कारन व परिणाम
'गरीबी' के फेर में
पिसता रहा हे.



Monday 2 April 2012

Ankita Panwar

उजाड़ कुछ भी नहीं होता


मेरी बंद पड़ी कलम आज कुछ लिखना चाहती 
 हे
और वो स्याही मिल गई हे तेरे एहसासों में
जो कुछ अरसे से सूख गई थी
अब ये शब्द एक लंबा सफ़र तय करना चाहते हे
वहां तक जहाँ तुम हो
मेरी आत्मा में जो कम्पन हो रहा हे
उसमे से कुछ ध्वनियाँ निकलना चाह रही हे
छितिज  से दूर फेलकर
समस्त कायनात में ये सन्देश देने
की
उजाड़ कुछ भी नहीं होता
कभी भी कही भी अनायास ही
शीशियो में बंद पड़े शब्द उभर ही आते हे
और होसलो से बंद पड़ी राहे
भी
स्वय ही खुल जाती हे


Ankita Panwar
ankitapanwar12@rediffmail.com