Saturday 5 May 2012

Ankita Panwar



आज का सच


किसी भी शब्द के 
सबके लिये भिन्न-भिन्न अर्थ होते हैं
मैं तुमसे पूछना चाहती हूँ- प्रेम क्या है?
शब्दों को दो-तीन बार दोहरा देना ही
यही सोचते हो तुम
सुनने व समझने का 
वक्त ही कहां है तुम्हारे पास
तुम हो चुके हो शामिल उन लोगों में
जिन्हें सिर्फ भौतिकता ने जकड़ रखा है
जीवन का एक संवेदनात्मक पक्ष भी है
जो कि मेरे भीतर अब भी जिन्दा है
तुम तो हो गये हो आदी बाजार के
परन्तु मैं अब भी वहीं हूँ
प्रकृति की छांव में, गांव की मांटी में
हमारा तो अब कोई मेल भी नहीं
सिर्फ एक नाम का रिश्ता है
जो कि आज हर शख्स का एक कड़वा सच है! 


  • द्वारा श्री उदय पंवार, भरत विहार, निकट ऋषि गैस एजेन्सी, हरिद्वार रोड, ऋषिकेश-249201(उ.खंड)

Thursday 3 May 2012

साँझ, मई २०१२


साँझ के मई २०१२ के अंक में,
अतीत से, में शहरयार की ग़ज़ल और परवीन शाकिर की नज़्म.
कव्यधरा में, अंकिता पंवार, विनीता जोशी,सुधीर मौर्या 'सुधीर' की कवियाये और बरकतुल्ला अंसारी की ग़ज़ल.
कथासागर में, सुधीर मौर्या 'सुधीर' की लघुकथा. 




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