Thursday 29 March 2012

Ankita Panwar


आप की कवितायों में बहुत गहराई हे. प्रस्तुत कविता आपकी उच्च काव्य प्रतिभा का एक उदहारण मात्र हे, मुजे विश्वास हे आपकी ये कविता आप के रचनात्मक जीवन में मील का पत्थर साबित होगी. प्रस्तुत हे अंकिता पंवार की एक भावपूर्ण कविता......


समर्पण


ऊँचे पहाड़ की चोटी से निकलते सूरज की
खुबसूरत हलकी गुनगुनी धूप
पहाड़ के उस हिस्से की हरियाली
कुछ ही दूर बिछी हुई कोहरे की चादर
कही भीतर फूटता हुआ झरना
और निरंतर बढता हुआ आगे की और
में मानती हूँ की यूं प्रक्रति प्रेमी हो
चाहते हो ताउम्र निहारना
पर उससे पहले मेरी भी कुछ सुन लो
पहाड़ सिर्फ स्वम ही पहाड़ नहीं होते
ये जिन्दगी को भी पहाड़ बना देते हे
हर उस शख्स को जो उनसे जुड़ जाय
पर कही ये न समझना की वो इनकी साजिश हे
क्या इनकी अपनी कोई वेदना नहीं हो सकती
स्वम में साड़ी विक्त्ताय समेटे हुए
सुकून देते रहे लम्बी अवधि तक
ये भी वो मुमकिन नहीं
में भी तो अब विकट हो चली हु इन सब में
इस धरती की पैदाइश रही हूँ
अपनी इच्छा तो समर्पण की हे सदा से
परन्तु अब मुझे भी चाहिए 
सच में किसी का निश्चल समर्पण
पहाड़ भी तो मांगते हे समर्पण कठोर जिन्दगी का
तो फिर में क्यों न मंगू ?
अब तुम्हे भी तो कुछ चुकाना होगा
वरना कही में भी भूल न जाऊ समर्पण का अर्थ.


ANKITA PANWAR
BHARATVIHAR NEAR RISHI GAS GODAM
HARIDWAR ROAD, RISHIKESH- 249201
ankitapanwar12@rediffmail.com

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